Sunday, June 20, 2021

स्फुटित

इन पुष्पो में मुझे तेरी तस्वीर नज़र आती है,
लोग क्या जाने की मुझे इनमे क्या मिलता है!
सच कहूँ तो बस चंद लम्हे ख़ुशी के और,
उम्र भर की प्यारी सी यादें मिल जातीं है।।

अश्क़ो वाली रांते मुझे याद नही आती है,
तेरी हल्की सी मुस्कान जो बीच आ जाती है।
ओह! तेरी नकचढ़ी नाक तो मुझे,
आज भी हँसा कर ही जाती है।।

भौहों को चढ़ा कर गुस्सा दिखाना,
तो कोई तुमसे सीखे..!
गलत करने बढ़ता हूँ जब,
तो कम्बख्त आज भी डराती है।।

खिले सुमन पर जब भंवर गुनगुनाती है,
लगता है जैसे मुझे तू बुलाती है।
पलटता हूँ लालायित नयनो से,
पर तू हर दफा अफवाह बन जाती है।|

हर अवसर उस पत्ती की तरह है,
जो समय निकलते ही मुरझा जाती है।
पर तुम तो मेरे उपवन की कली हो,
जो जाकर भी अपना फल दे जाती है।।
 
     
              ---- रावेंद्र कुमार

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