यह कैसा संग्राम है आ ठहरा ?
हर घाव है पिछले घाव से गहरा |
गिरधर कुरुक्षेत्र धर्मयुद्ध से पहले,
गांधारी भी न ऐसे रोती होगी |
सत पुत्रो की महारानी वो,
मेरी रानी जैसे न नित मरती होगी ||
दो उजले नयन सुख है मेरे,
फिर भी आज पड़े अंधकार तले |
यह कैसा महायुद्ध है मदुसूदन ?
नहीं देखी ऐसी बेबसी, न लाचारी |
जो नर, नारी, जच्चा, बच्चा, तरुण
वयस्क, वृद्ध सबसे करे है युद्ध भारी ||
गिरधर कुरुछेत्र...
कैसे तपन मिटाऊ इसकी ?
घर चित धरे- भुखाग्नि भभक पड़े |
ज्यों कमाने को चले कदम,
तस पुलिस की लाठी बदन पड़े |
नारायण कैसी मेरी विपदा आन पड़ी ?
मै यहाँ और वनिता संग दो सुत वंहा खड़े ||
गिरधर कुरुछेत्र...
है प्रकोप कैसा ? हे वंशीधर,
सभी विक्षोभ आज है शांत पड़े |
न रण- कृपाण,न अर्जुन-धनुर्धर,
भूख, प्यास, डर, तड़प, हुए अस्त्र |
कहो कब कहाँ कैसे प्रयोग हुए पहले?
कौन रोक युद्ध-रथ आज गीता पड़े ?
गिरधर कुरुछेत्र...
-रावेन्द्र कुमार
This blog is made for the purpose of sharing my poems. I will be also adding my notes and lecture for you if you are someone preparing for India Economics Service and UGC-NET/JRF in economics.
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