Sunday, July 4, 2021

तलाश जारी है मेरी मंजिल की

मैं बैठा हूँ अपनी उलझन में,
ख़ामोशी को दबाये हुए |
माथे पर सिकन बनाएं हुए ||
और यूँ न देखो मेरी ओर,
बिना पलके झुकाये हुए |
अभी तो बस चंद लम्हे बीतें है जिंदगी के,
तलाश जारी है मेरी मंजिल की ||

हूँ ऐसा, बस यूँ ही बैठा रहता हूँ,
महीनों तक बिना मुस्कराये हुए |
कभी देखा है बिना सावन के,
कोयल को कूक राग लगाए हुए ?
देख रहा हूँ टकटकी लगाए हुए |
की बस जाने वाले है, वो पल जिंदगी के,
तलाश जारी है मेरी मंजिल की ||

सुबह से सायं तक चलते हुए ,
दोपहर से रात तक बदलते हुए |
कभी मौसम नहीं बदलते मेरे,
ग्रीष्म से शरद तक बादल घुमड़ते हुए |
कबसे नहीं देखा खगो को भी उड़ते हुए |
उम्मीद में की कुछ रूप बदलेंगे जिंदगी के,
तलाश जारी है मेरी मंजिल की ||
                     - रावेन्द्र कुमार

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